सलोनी का प्यार (उपन्यास)लेखनी कहानी -17-Jan-2022
भाग -5
आज सुरजीत ने मेरी गुड़िया मुझसे छीन कर , उसके हाथ पैर तोड़ कर सारे कपड़े फाड़ कर नाली में फैंक दिया..
बहुत गन्दा है वो मैं चाची को बताने गई तो उल्टा मम्मी ने ही मुझे डांट दिया सबके सामने। दिन भर गुड्डे-गुड़ियों से खेलती रहेगी या कॉमिक्स पढ़ती रहेगी ये नहीं की मेरे और दीदी के साथ घर के काम में मदद करे।
पन्ने पलटते हुए चेहरे पर एक मुस्कान आ गई और वो दिन याद आ गए, सलोनी अपनी डायरी के पन्ने पलटते हुए लौट आई थी उन दिनों में जब वो राहुल का मोहल्ला छोड़ नई जगह आ गई जब उसके पापा का तबादला हो गया था।
नई जगह , उस नए मोहल्ले के पड़ोसी बहुत अच्छे थे। बहुत जल्दी ही पारिवारिक माहौल आस पड़ोस में मिलने लगा, कोई चाची तो कोई मामी, दीदी , भाभी, मौसी, बुआ सभी रिस्ते तो बना लिए थे राधिका और सलोनी ने अपने स्वभाव से। वहीं पड़ोस के बच्चों के साथ खेलने भी जाने लगी। राहुल की यादें सफेद चादर पर गिरे चाय के दाग की तरह ही उसके मन के एक कोने में रह गई। वो याद नहीं करना चाहती थी उस लड़के को , पर उसके चाहने ना चाहने से क्या होता है। इस नई कॉलोनी में सुरजीत जिसकी मम्मी शीला उसकी मम्मी राधिका की सहेली बन थी और उनके घर आना-जाना लगा रहता सलोनी का भी ,कभी चाची को अपने घर बुलाने के लिए तो कभी मम्मी को बुलाने के लिए जो अपनी सहेली के पास बैठ कभी स्वेटर बुनने चली जाती तो कभी कुछ नया सीखने। शीला के दो बेटे थे संचित और सुरजीत।वो छोटे बेटे को लेकर परेशान रहती, बहुत ही शरारती था और उसका पढ़ने में बिल्कुल मन ना लगता, दिन भर खेलता और अपनी शरारतों से सबको तंग करते रहता जबकि संचित बहुत समझदार और होशियार था , पढ़ाई-लिखाई के साथ मम्मी पापा का हाथ बटाता।
सुरजीत सलोनी की उम्र का ही था उसमें खासियत यह थी कि वो सलोनी के साथ खेलता, खूब दुनिया जहान की बात करता। कभी उसके रंग रूप या बदसूरती के बारे में भूले से भी ऐसी कभी कोई बात ना कहता जो सलोनी के मन को ठेस पहुंचाऐ। हां कभी उसके बाल खींचता,कभी पीछे से आकर अपने दोनों हाथों से उसकी आंखे बंद कर देता। उसके गोरे हाथ जब सलोनी के चेहरे पर दिखते तो लगता ब्लेक बोर्ड पर चॉक से चित्र बनाया गया है। कुछ ही दिनों में उनकी दोस्ती ब्लैक बोर्ड और चॉक सी ही हो गई। जितना सुन्दर वो बाहर से दिखता उसका मन भी सलोनी को उतना ही सुन्दर लगता जब वो सलोनी के साथ खेलता, कभी कभी खेल में उनका झगड़ा भी हो जाता और मार पीट भी, फिर थोड़ी देर दोनों मुंह फुलाए बैठ जाते पर थोड़ी देर बाद ही भूल जाते कि झगड़ा किस बात पर हुआ था।
उस दिन भी तो जब मैं अपनी सहेली कृतिका लीला सीमा सबके साथ खेल रही थी गुड्डे-गुड़िया की शादी वाला खेल, सुरजीत भी अपने दोस्तों के साथ आ गया हमारे साथ खेलने और बोला," सलोनी तुम बेटी वाले और हम बेटे वाले तो चल गुड्डा हमको दे हम बरात लेकर आएंगे और तुम बरातियों का स्वागत अच्छे से करना, तो चलो शुरू हो जाओ तैयारी में अच्छा खाने का इंतजाम होना चाहिए।" सबको सुरजीत का आईडिया बड़ा पसंद आया,वाह! बहुत मज़ा आएगा। हमें क्या चाहिऐ था हमारे साथ खेलने के लिए और बहुत सारे बच्चे आ गए थे उस दिन हम खूब धूमधाम से गुड़िया की शादी करेंगे सोचकर तैयारी करने लगे।खूब सुंदर से मम्मी की साड़ी और चुन्नी से टैंट बनाया, जेब खर्च यानि स्कूल जाते समय जो पैसे मिलते थे बस के लिए मैं अक्सर बचा लेती थी और मेरी सहेली कृतिका और बाकी लड़कियों ने भी अपने पैसे दिए और हम कोल्ड ड्रिंक , चॉकलेट,टॉफी चिप्स के साथ और भी बहुत सारा खाने का सामान ले आए। रेडियो भी चला दिया सब नाच गा रहे थे। खूब मज़ा आ रहा था हम सबको पर फिर अचानक झगड़ा शुरू हो गया जब सुरजीत और उसके दोस्त हमारा लाया सारा सामान खा गए और उन्होंने पैसे भी नहीं दिए थे सामान लाने में,मेरा गुड्डा गुडिया दोनों लेकर जब वो जाने लगे तो मैंने उससे अपना गुड्डा गुडिया छीनना चाहा बस उसी छीना झपटी में सुरजीत ने मेरी गुड़िया गुड्डा दोनों तोड़ कर नाली में फेंक दिया।
तुमने सब कुछ खा लिया और हमारे लिए कुछ नहीं छोड़ा,कृतिका और लीला भी रोने लगी, सीमा को साइड ले जाकर सुरजीत कहने लगा ऐसा ही ना होता है बाराती हैं लड़के वाले हैं हम तो ये सब हमारे लिए ही था ना और तुम लोगों ने कोई शादी नहीं देखी है क्या, शादी के बाद लड़के वाले लड़की को ले जाते हैं कि नहीं।अब ये गुडिया हमारी हुई। ईधर मैं अपनी जिद्द पर अड़ गए ई थी, ऐसा कैसे होगा, मेरा गुड्डा गुडिया मुझे वापिस कर। मैं नहीं दूंगी अपनी गुड़िया किसी को और ये गुड्डा तो मैं दीदी का लेकर आई थी खेलने के लिए उससे मांगकर,वो कैसे दे देती।
गुड्डा गुडिया नाली में बह रहे थे और गंगा यमुना मेरी आंखों से, लड़ाई झगडे में मम्मी की साड़ी और दीदी की चुन्नी जिससे हमने टैंट बनाया था, भी फाड़ दी थी सुरजीत और उसके दोस्तों ने। सीमा हमें समझाने की कोशिश कर रही थी,अरे! ऐसा ही होता है गलती तुम्हारी है, तुम्हें झगड़ा शुरू नहीं करना चाहिए था। वो मौका देखकर वहां से खिसक गई लीला और कृतिका भी मुझे समझा बुझाकर थोड़ी देर में चली गई।कृतिका ने ही कहा जा चाची से शिकायत कर दे जब इस सुरजीत के बच्चे की पिटाई होगी ना तब ही इसे अक्ल आऐगी। लड़कियों के साथ खेलने आ जाता है और हमारा सारा खेल भी बिगाड़ कर चला जाता है।
मैं रोते हुए ही चाची के घर जाकर उनसे सुरजीत की शिकायत करने गई थी और मेरी मम्मी भी वहीं बैठी स्वेटर बुन रही थी, सुरजीत वहीं मेरी मम्मी के पास आकर बिल्कुल भोला मासुम सा बनकर उस गुलाबी ऊन के बॉल को हाथ में पकड़े था।उसे देखते ही गुस्से से भर गई थी मैं, वो गुलाबी स्वेटर मम्मी मेरे लिए ही बना रही थी,जरूर ये भी बिगाड़ देगा। पर ये तो उल्टा मम्मी ने मुझे ही डांट दिया और घर आकर तो पिटाई भी की जब घर की हालत बिगड़ी देखी और अपनी साड़ी और दीदी की चुन्नी फटी देखी।
मानसी ओ मानसी कहां है, घर को कबाड़ा बना दिया सलोनी और इसके दोस्तों ने ... मानसी जो कि अपनी एक नोवेल में डूबी हुई दूसरी ही दुनिया में थी अपने कमरे में,उस महायुद्ध की खबर ही नहीं हुई जो कुछ समय पहले ही घर के आंगन में हुआ था... ऐसी ही थी मेरी बहन। डायरी के पन्ने पलटते हुए बचपन के उस हिस्से को याद कर रही थी।
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कविता झा काव्या कवि
#लेखनी
##लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता
Seema Priyadarshini sahay
12-Feb-2022 04:28 PM
रोचक भाग।लिखते रहिए
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Arman Ansari
12-Feb-2022 01:28 AM
कहानियां या नॉवल हम बढ़ने बैठते हैं तो भूल ही जाते में तो जब तक भी छोड़ता जब तक खत्म नही हो जाती
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